लेखनी प्रतियोगिता -06-Dec-2022 संसार - घर संसार
💐💐स्वेच्छा 💐💐
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स्वेच्छा से दबे पांव उनका घर में प्रवेश
अजनबी सा एक आभार था ।
हवा में कंपन पैदा कर गया ।
जैसे पानी में लहरें उठने लगी हो ।
लगा कोई सपना देख रही हूं ।
एक अनूठा सुगंधमय वातावरण पैदा हो गया ।।
स्वेच्छा से स्वतंत्रता का आभास हुआ ।
जीवन में उमंग भरी शक्ति का संचार हो गया ।
हवा से मैं बातें करने लगी ।
मानो पर लग गए हो ।
ऐसा लगा मानो स्वर्ग मिल गया हो ।
जैसे क्षितिज मिल गया हो ।।
स्वेच्छा से उनका प्रपोज करना
एक संगीत पैदा कर गया ।
संसार का सर्वोत्तम उपहार दे गया ।
स्वेच्छा से नए चाहती हुई उनकी बाहों में समा गई।
किन्तु अचानक पहाड़ टूट पड़ा ।
नींद खुलते ही सपना टूट गया ।
लगा धरातल में समा गई ।
काश यह सपना सचमुच में सही होता ।
जिंदगी में हर वक्त स्वेच्छा मायने नहीं रखती ।।
स्वेच्छा से मां का आंचल पाकर
लगा जन्नत की सैर हो गई ।
कुबेर का खजाना मिल गया ।
लगा मुझसे बड़ा भाग्यशाली कोई नहीं
प्यार की लड़ाई में मैं विजय प्राप्त कर गई।।
हनीप्रेम विजय (विजय पोखरणा)
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
08-Dec-2022 11:10 PM
शानदार
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Varsha_Upadhyay
08-Dec-2022 08:37 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Gunjan Kamal
08-Dec-2022 09:27 AM
बहुत खूब
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